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मुतफ़र्रिक़ अशआर / सुरेश चन्द्र शौक़
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17:00, 7 दिसम्बर 2008
जी करता है जंगल के इक गोशे को आबाद करें
धूनी रमाएँ,चिलम
भरेम
भरें
और भोलेनाथ को याद करें
~~
~~
रुक—सा
रुक-सा
गया है
सिल्सिला—ए—नज़्मे—कायनात
सिल्सिला-ए-नज़्मे-कायनात
थम—
थम-
सी गई है
गर्दिशे—दौराँ
गर्दिशे-दौराँ
तिरे बग़ैर
~~
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