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{{KKRachna
|रचनाकार=ज्ञान प्रकाश विवेक
|संग्रह=गुफ़्तगू अवाम से है / ज्ञान प्रकाश विवेक
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[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
जो गया डूब भला कैसे बताऊँ उसको
मैंने चाहा तो बहुत था कि बचाऊँ उसको

बोझ कितना भी हो रख लूँ उसे काँधे पे मगर
ओस की बूँद है किस तरह ऊठाऊँ उसको

मैं उठा लाय हूँ टूटा हुआ तारा यारो,
शब की नज़रों से मगर कैसे छुपाऊँ उसको

दोस्त के दर पे खड़ा सोच रहा हूँ कबसे
दस्तकें दूँ याकि आवाज़ लगाऊँ उसको

बन गया जो बड़ा अफ़सर वो मेरा भाई है
मुझसे कहता है कि इज़्ज़त से बुलाऊँ उसको.
</poem>