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{{KKRachna
|रचनाकार=ज्ञान प्रकाश विवेक
|संग्रह=गुफ़्तगू अवाम से है / ज्ञान प्रकाश विवेक
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[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
बड़ा कठिन है सफ़र साथ चल सको तो चलो
तुम अपने आपको थोड़ा बदल सको तो चलो

शजर कहीं भी नहीं रास्ते हैं वीराने-
कड़ी है धूप मेरी तरह जल सको तो चलो

जो इश्तेहार बदलते हैं उनसे क्या उम्मीद
कि मेर सथ तुम मंज़र बदल सको तो चलो

पुरानी बन्दिशें रस्ता तुम्हारा रोकेंगी-
कि उनको तोड़ के घर से निकल सको तो चलो

उँचाइयों से फिसल कर बचा नहीं कोई-
मदद करो न करो, ख़ुद सँभल सको तो चलो.
</poem>