शाम-ए-फ़िराक़ अब न पूछ आई और आके टल गई<br>
दिल था के फिर बहल गया, जाँ थी के फिर सम्भल गई<br><br>
फ़िराक़ - वियोग , विरह <br>
बज़्म-ए-ख़्याल में तेरे हुस्न की शमा जल गई<br>
आख़िर-ए-शब के हमसफ़र 'फ़ैज़' न जाने क्या हुए<br>
रह गई किस जगह सबा, सुबह किधर निकल गई <br><br>
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