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{{KKRachna
|रचनाकार=श्याम सखा 'श्याम'
}}
<Poem>
भला
लगता है
आंगन में बैठना
धूप सेंकना
पर
इसके लिये
वक़्त कहां ?
वक़्त तो बिक गया
सहूलियतों की तलाश में
और अधिक-और अधिक
</poem>