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जहाँ न तेरी महक हो उधर न जाऊँ मैं / निदा फ़ाज़ली
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17:46, 16 दिसम्बर 2008
जहाँ न तेरी महक हो उधर न जाऊँ मैं <br>
मेरी सरिश्त सफ़र है गुज़र न जाऊँ मैं
सरिश्त - स्वभाव , गुण
मेरे बदन में खुले जंगलों की मिट्टी है <br>
Khinvra
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