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बार-बार / ज्ञानेन्द्रपति
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15:09, 25 दिसम्बर 2008
{{KKRachna
|रचनाकार=ज्ञानेन्द्रपति
|संग्रह=
}}
<Poem>
बार-बार
और रिक्त करके ही उठते हो ।
</poem>
अनिल जनविजय
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