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आगे चले चलो / वृन्दावनलाल वर्मा
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04:06, 29 दिसम्बर 2008
निर्बल है भृकुटि-भंग वह तुम आँख मिला लो,
और ध्यान धर जगदीश का आगे चले चलो।
'''रचनाकाल : 1914
</poem>
अनिल जनविजय
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