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आये दिन बहार के / नागार्जुन

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[[Category:कविताएँ]]
[[Category:नागार्जुन]]
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~<Poem>'स्वेत-स्याम-रतनार' अंखिया अँखिया निहार के 
सिण्डकेटी प्रभुओं की पग-धूर झार के
 
लौटे हैं दिल्ली से कल टिकट मार के
 खिले हैं दांत दाँत ज्यों दाने अनार के आये आए दिन बहार के ! 
बन गया निजी काम-
 
दिलाएंगे और अन्न दान के, उधार के
 
टल गये संकट यू.पी.-बिहार के
 
लौटे टिकट मार के
 आये आए दिन बहार के ! 
सपने दिखे कार के
 
गगन-विहार के
 
सीखेंगे नखरे, समुन्दर-पार के
 
लौटे टिकट मार के
आए दिन बहार के !
आये दिन बहार के !रचनाकाल : 1966  १९६६ में लिखी गई</poem>
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