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बात / प्रयाग शुक्ल

4 bytes added, 06:00, 1 जनवरी 2009
|संग्रह=यह एक दिन है / प्रयाग शुक्ल
}}
 <Poem>
उस बात के सिरे के लिए कोई
 
शब्द नहीं है शुरू में ।
 
और जितने आते हैं उन्हें हम एक-एक कर
 
अधूरा मानते हुए छोड़ने लगते हैं ।
 
हम कई चीज़ों को याद करते हैं
 
और पाते हैं कि वे उस बात के बीच
 
की नहीं हैं । यह एक लंबा सिलसिला है ।
 
अंत में हम उठ पड़ते हैं,
 
कापी कलम और सिगरेट का पैकेट
 सँभालते संभालते </poem>
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