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चंद शेर / फ़ानी बदायूनी
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09:40, 1 जनवरी 2009
तजल्लियाते-वहम हैं मुशाहिदाते-आबो-गिल।
करिश्मये-हयात है ख़याल, वोह भी ख़वाब का।।
एक मुअ़म्मा है समझने का न समझाने का।
ज़िन्दगी काहे को है? ख़वाब है दीवाने का।।
विनय प्रजापति
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