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कई बरस पहले / प्रयाग शुक्ल
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12:37, 1 जनवरी 2009
|संग्रह=यह जो हरा है / प्रयाग शुक्ल
}}
<Poem>
एक बहुत पुराने काले
संदूक पर
बैठी हुई स्त्री वह--
माँ थी मेरी ।
एक लड़के के घर से
दूसरे लड़के के घर जाती हुई ।
दूर से देखता था मैं
संदूक को
रहते होंगे
कभी मेरे भी कपड़े
इसमें, बचपन के ।
</poem>
अनिल जनविजय
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