|संग्रह=यह जो हरा है / प्रयाग शुक्ल
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<Poem>
खंडहरों को किसी का इंतज़ार नहीं--
न ही उन चिड़ियों का जो उड़ती
हैं इन खंडहरों के ऊपर--
बारिश का भी नहीं ।
न धूप का ।
न तारों का ।
खंडहरों को चिन्ता है तो
सिर्फ़ दीवारों को फोड़कर
उगे पौधों की
घास की
जिनसे बँधे बंधे हैं वे ।</poem>