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जाने न देना / प्रयाग शुक्ल

6 bytes added, 12:42, 1 जनवरी 2009
|संग्रह=यह जो हरा है / प्रयाग शुक्ल
}}
 <Poem>
आकाश को जाने न देना
 
अपनी पकड़ से ।
 
उसमें हैं तुम्हारे मेरे रंग ।
 
जब हम खिड़की खोलेंगे
 
ट्रेन की । कमरे की ।
 
दिखेंगे नहीं क्या हम-तुम
 
एक-दूसरे को ।
 
उसमें ।
</poem>
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