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कोहरे में / प्रयाग शुक्ल
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12:54, 1 जनवरी 2009
|संग्रह=यह जो हरा है / प्रयाग शुक्ल
}}
<Poem>
कोहरे को
भेदकर
लटका है
चँद्रमा
चंद्रमा
किसी तरह ।
आ-जा रहे हैं लोग
जैसे हो छायाएँ--
झूल रहा फटा
हुआ पोस्टर--
(इबारत को पढ़े कौन ?)
चुप गीली पत्तियाँ ।
बसें सरकती हुईं ।
पटरी पर ठंड में
मूंगफली
बेच रहा
लड़का ।
ठिठुरन--
ठिठुरन एक ।
कोहरे में--
शहर एक और ।
</poem>
अनिल जनविजय
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