रामेश्वर'''''
आदरणीय काम्बोज जी! नमस्कार।
सबसे पहले तो मैं यह बता दूँ कि मैं इस पत्र का उत्तर तुरन्त इसलिए दे रहा हूँ ताकि आप यह न समझें कि आपके पत्र मुझे मिल नहीं रहे या मैं आपको उत्तर देने से बच रहा हूँ। मैं एक काम में व्यस्त हूँ, इस वज़ह से तुरन्त आपकी बात का उत्तर नहीं दिया था। सोच रहा था वह काम पूरा करके निश्चिन्त होकर उत्तर दूंगा ताकि विस्तार से लम्बी बात कर सकूँ। विस्तार से तो बात बाद में ही होगी। संक्षेप में अभी कह देता हूँ। मैं दरअसल रूसी छात्रों को हिन्दी पढ़ाता हूँ। हम उन्हें बताते हैं कि हिन्दी वैज्ञानिक भाषा है और देवनागरी वैज्ञानिक लिपि। हिन्दी में जो बोलते हैं वही लिखते हैं। लेकिन शायद या तो मेरा उच्चारण ही ग़लत है या हमारी देवनागरी वैज्ञानिक नहीं है, क्योंकि यह बात मैं
अभी तक उन्हें नहीं समझा पाया कि हम "चांद" बोल कर "चाँद" क्यों लिखेंगे। आपने मानक हिन्दी वर्तनी के जो दो पृष्ठ संलगित किए हैं वे भी यह नहीं बताते कि चांद 'चाँद" होना चाहिए और गांधी को 'गाँधी' लिखना ठीक है। चांद उर्दू से हिन्दी में आया है। उर्दू में चन्द्रबिन्दु नही होता। वह संस्कृत का शब्द भी नहीं है। फिर किस नियम से उसमें चन्द्रबिन्दु लगेगा। चांद में स्पष्ट 'न' की ध्वनि सुनाई देती है। ना कि साँस या बाँस की तरह नाक से बोली जाने वाली ध्वनि। यही बात 'मांद' , 'बांध', 'अंधेरा' आदि शब्दों के साथ है। अगर हिन्दी-शब्दों का उच्चारण समाज में समय के साथ बदल रहा है तो यह बात भी देवनागरी में परिलक्षित होनी चाहिए। अभी संक्षेप में इतना ही।
अब कविता-कोश के सिलसिले में आपके सवाल का उत्तर दे दूँ। कविता कोश में रचनायें जोड़ने वाले व्यक्ति का नाम रचना के साथ जोड़ने की कोई प्रथा नहीं है क्योंकि अलग से "हाल में हुए बदलाव" में उस व्यक्ति का नाम सुरक्षित रहता है जिसने रचना जोड़ी। आपने इतने सारे लोकगीत जोड़े हैं, लेकिन आपका नाम तो उन लोकगीतों के नीचे नहीं दिखाई देता। अगर वह रचना आपकी अपनी है, तब तो आपक नाम रहेगा ही। लेकिन किसी अन्य व्यक्ति की रचना के साथ जोड़ने वाले का नाम भी रहे यह बात कुछ समझ में नहीं आती।
मेरे से कुछ अशिष्टता आपके सम्मान में या भावना कुँवर जी के सम्मान में अनजाने में हो गई हो तो क्षमा चाहूंगा। (यहाँ शायद आपके अनुसार "चाहूँगा" होने चाहिए ) लेकिन मेरी मंशा आप लोगों को दुख पहुँचाने या आपका अपमान करने की कभी नहीं रही।
विस्तार से बात करने के लिए प्रस्तुत रहूंगा (रहूँगा)।
सादर
अनिल जनविजय