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खुमानी, अखरोट! / गुलज़ार

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ख़ुमानी मोटी थी और अख़रोट का क़द कुछ ऊँचा था
भँवर कोई पीछे पड़ जाए, तो पत्थर की आड़ से होकर,
अख़रोट का हाथ पकड़ क्के के वापस भाग आती थी।
अख़रोट बहुत समझाता था,
अख़रोट का क़द कुछ सहम गया है
उसका अक़्स नहीं पड़ता अब पानी में!
 
</poem>
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