Changes

दावत / अमृता प्रीतम

93 bytes added, 20:05, 7 जनवरी 2009
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अमृता प्रीतम
|संग्रह=
}}
<Poem>
रात-कुड़ी ने दावत दी
 
सितारों के चावल फटक कर
 
यह देग किसने चढ़ा दी
 
चाँद की सुराही कौन लाया
 
चाँदनी की शराब पीकर
 
आकाश की आँखें गहरा गयीं
 
धरती का दिल धड़क रहा है
 
सुना है आज टहनियों के घर
 
फूल मेहमान हुए हैं
 
आगे क्या लिखा है
 
आज इन तक़दीरों से
 कौन पूछने जायेगा . . . 
उम्र के काग़ज़ पर —
 
तेरे इश्क़ ने अँगूठा लगाया,
 
हिसाब कौन चुकायेगा !
 
क़िस्मत ने एक नग़मा लिखा है
 
कहते हैं कोई आज रात
 
वही नग़मा गायेगा
 
कल्प-वृक्ष की छाँव में बैठकर
 
कामधेनु के छलके दूध से
 
किसने आज तक दोहनी भरी !
 
हवा की आहें कौन सुने,
 
चलूँ, आज मुझे
 तक़दीर बुलाने आई है . . .</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
54,068
edits

इस पृष्ठ को बेहतर बनाने में मदद करें!