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{{KKRachna
|रचनाकार=पाब्लो नेरूदा
|संग्रह=
}}

<Poem>
और दोपहर के बाद आते हैं सजे-धजे प्राणी
लाशों में सूंघने के लिए
और करने के लिए अपना भोजन

और तोड़ लेते हैं सभी ढेर से सजे-धजे प्राणी
फूले हुए नाशपाती धूल से
और मिनेस्त्रोन-सूप हिलाते हैं बिखरी हड्डियों से

और जब हो जाता है भोजन
वे वहीं पसर जाते हैं आराम से
निथारते हुए लाल मदिरा को सुविधाजनक खोपड़ियों में


'''अनुवादक: अनिल एकलव्य
</poem>
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