1,324 bytes added,
14:02, 10 जनवरी 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मोमिन
}}
[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
मुझपे तूफ़ाँ उठाये लोगों ने
मुफ़्त बैठे बिठाये लोगों ने
कर दिए अपने आने जाने के
तज़किरे जाए-जाए लोगों ने
वस्ल की बात कब बन आयी थी
दिल से दफ़्तर बनाये लोगों ने
बात वहाँ अपनी न जमने दी
अपने नक़्शे जमाये लोगों ने
सुनके उड़ती-सी अपनी चाहत की
दोनों के होश उड़ाये लोगों ने
बिन कहे राज़हा-ए-पिन्हानी
उसे क्योंकर सुनाये लोगों ने
क्या तमाशा है जो न देखे थे
वह तमाशे दिखाये लोगों ने
'''शब्दार्थ:
'''तज़किरा''': चर्चा, '''जाए-जाए''': इधर-उधर दुनिया भर में, '''राज़हा-ए-पिन्हानी''': छुपे हुए भेद
</poem>