{{KKRachna
|रचनाकार=मोमिन
}}दफ़्न जब खाक में हम सोखता सामाँ होंगे <br>माही के गुल, शम्म-ए-शबिस्ताँ होंगे --- ? <br>[[Category:ग़ज़ल]]<brpoem>
तू कहाँ जाएगी कुछ अपना ठिकाना कर ले <br>दफ़्न जब ख़ाक में हम सोख़्ता सामाँ होंगेहम तो कल ख्वाब-ए-अदम में शबफ़स्ल माही के गुल-ए-हिजराँ शम्अ, शबिस्ताँ होंगे <br><br>
एक हम हैं कि हुए ऐसे पशेमान कि बस <br>करके ज़ख़्मी मुझे नादिम हों यह मुमकिन नहींएक वो हैं कि जिन्हें चाह के अरमाँ गर वह होंगे भी तो बे-वक़्त पशेमाँ होंगे<br><br>
तू कहाँ जाएगी कुछ अपना ठिकाना कर लेहम निकालेंगे सुन ए मौजतो कल ख्वाब-ए-सबा बल तेरा <br>उसकी ज़ुलफ़ों के अगर बाल परेशाँ होंगे <br><br> फिर बहार आई वही दश्त नवरदी होगी <br>फिर वही पाँव वही खारअदम में शब-ए-मुग़ीलाँ हिजराँ होंगे<br><br>
मिन्नत-ए-हज़रत-ए-ईसा न उठाएँगे कभी<br>एक हम हैं कि हुए ऐसे पशेमान कि बसज़िन्दगी एक वो हैं कि जिन्हें चाह के लिए शर्मिन्दा-ए-एहसाँ अरमाँ होंगे? <br><br>
हम निकालेंगे सुन ए मौज-ए-हवा बल तेराउसकी ज़ुल्फ़ों के अगर बाल परेशाँ होंग सब्र यारब मेरी वहशत का पड़ेगा कि नहींचारा-फ़रमा भी कभी क़ैदी-ए-ज़िन्दाँ होंगे दाग़े-दिल निकलेंगे तुरबत से मेरी जूँ-लालायह वह अख़गर नहीं जो ख़ाक में पिनहाँ होंगे चाक परदा से यह ग़मज़े हैं तो ऐ परदानशीं एक मैं क्या कि सभी चाक-गरेबाँ होंगे फिर बहार आई वही दश्त नवर्दी होगीफिर वही पाँव वही ख़ार-ए-मुग़ीलाँ होंगे मिन्नत-ए-हज़रत-ए-ईसा न उठाएँगे कभीज़िन्दगी के लिए शर्मिन्दा-ए-एहसाँ होंगे? संग और हाथ वही, वह ही सर-ओ-दाग़ए-जुनूँवह ही हम होंगे, वही दश्त-ओ-बयाबाँ होंगे उम्र तो सारी क़टी कटी इश्क़-ए-बुताँ में 'मोमिन <br>'आखरी आख़री उम्र में क्या खाक मुसलमाँ होंगे</poem>