825 bytes added,
23:50, 13 जनवरी 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अमृता प्रीतम
|संग्रह=
}}
<poem>
काया की हक़ीक़त से लेकर —
काया की आबरू तक मैं थी,
काया के हुस्न से लेकर —
काया के इश्क़ तक तू था।
यह मैं अक्षर का इल्म था
जिसने मैं को इख़लाक दिया।
यह तू अक्षर का जश्न था
जिसने 'वह' को पहचान लिया,
भय-मुक्त मैं की हस्ती
और भय-मुक्त तू की, 'वह' की
मनु की स्मृति
तो बहुत बाद की बात है...
</poem>