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21:11, 14 जनवरी 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=तुलसी रमण
|संग्रह=ढलान पर आदमी / तुलसी रमण
}}
<poem>
माँ की गोद में
दूध की धार में लीन
धार टूट जाने पर
पीटता माँ का वक्ष
''गाची१'' में बंधा
मां की पीठ पर सवार
कंधों से झूलता
वेणी से खेलता
दुनिया के खेल
माँ के हाथों की
उंगलियाँ मरोड़ता
गिनता
संसार की संख्याएं
माँ का हाथ लिए
जग के विस्तार में
बढ़ाने लगता अपना दूसरा हाथ
देखती रहती
माँ की आँख
पिघलता जाता
उसका अंतर
- १. कमर में बांधा जाने वाला वस्त्र -
</poem>