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घर -२ / नवनीत शर्मा
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[[Category:कविता]]
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खिड़कियों को भाने लगा है आकाश
सूरज से बिंध रही है छत
घर तब तक ही रहता है घर
जब तक उग नहीं आते
उसी में से और कई छोटे-छोटे घर.
</poem>
अनिल जनविजय
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