837 bytes added,
10:01, 15 जनवरी 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=गजानन माधव मुक्तिबोध
}}
<poem>
मैं उनका ही होता जिनसे
:मैंने रूप भाव पाए हैं।
वे मेरे ही हिये बंधे हैं
:जो मर्यादाएँ लाए हैं।
मेरे शब्द, भाव उनके हैं
:मेरे पैर और पथ मेरा,
:मेरा अंत और अथ मेरा,
::ऐसे किंतु चाव उनके हैं।
मैं ऊँचा होता चलता हूँ
:उनके ओछेपन से गिर-गिर,
:उनके छिछलेपन से खुद-खुद,
::मैं गहरा होता चलता हूँ।
</poem>