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बहुत दिनों से / गजानन माधव मुक्तिबोध
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21:27, 16 जनवरी 2009
तुमसे चाह रहा था कहना!
जैसे मैदानों को आसमान,
कुहरे की मेघों की
आशा
भाषा
त्याग
बिचारा आसमान कुछ
रूप बदलकर रंग बदलकर कहे।
</poem>
Eklavya
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