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मज़दूर / सीमाब अकबराबादी
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08:38, 18 जनवरी 2009
इसके दिल तक ज़िन्दगी की रोशनी जती नहीं
भूल कर भी इसके होंठों तक हसीं आती नहीं.
मज़रूह: घायल ; मुज़महिल :
थका हुआ ; बामाँदगी: दुर्बलता
</poem>
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