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शायरे-इमरोज़ / सीमाब अकबराबादी
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08:54, 18 जनवरी 2009
तूने क्या मंजूम की है दास्ताने दर्दे-क़ौम?
अपने सोज़े -दिल से गरमाया है सीनों को कभी?
तर किया है आँसुओं से आस्तीनों को कभी?
द्विजेन्द्र द्विज
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