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अव्यवस्था / मोहन साहिल

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|रचनाकार=मोहन साहिल
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<poem>
व्यवस्थित नहीं हो पाता मेरा ये कमरा
अव्यवस्था का सबसे बड़ा कारण है
कमरे में मेरा होना

मुझे नहीं मिलती वक्त पर एशट्रे
तीलियां जला डालती हैं
उंगिलयों के पोर
सब कुछ उलट पलट कर भी
कमरे में नहीं मिलती मुझे
गांधी की आत्मकथा
देशभक्ति और शास्त्रीय संगीत के कैसेट
जाने कहाँ रख दिए गए हैं

बहुत दिनों से शुरू की
अधूरी कविता नदारद है
जबकि अभी-अभी सूझा है
उसका अंत

मेरे कमरे में हर वक्त
मौजूद रहता है मेरा बच्चा
एकटक देखता मेरी बौखलाहट
और परेशान हो जाता है
सिर पर हाथ रख
अक्सर निहारता हूं उसका चेहरा
और अपनी कल्पना के साँचे में
ढालना चाहता हूँ उसे
और बनी रहती है
सारी अव्यवस्था।
</poem>
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