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इसी दुनियाँ में हूँ / मोहन साहिल
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02:12, 19 जनवरी 2009
और कमरा इसी दुनिया में है
दिन भर चाबुक खाए घोड़े
-
सा
शाम ढले हैरान हूँ कि
अभी तक हूँ खाल सहित
चाबुक खाने वालों का
खुश
ख़ुश
हूँ
मेरी इस हिनहिनाहट में
बहुत लोग शामिल हैं।
</poem>
अनिल जनविजय
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