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और कमरा इसी दुनिया में है
दिन भर चाबुक खाए घोड़े -सा
शाम ढले हैरान हूँ कि
अभी तक हूँ खाल सहित
चाबुक खाने वालों का
खुश ख़ुश हूँ
मेरी इस हिनहिनाहट में
बहुत लोग शामिल हैं।
</poem>
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