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लोककथा / केदारनाथ सिंह

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[[Category:कविताएँ]]
[[Category:केदारनाथ सिंह]] ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~ <Poem>
जब राजा मरा
 
सोने की एक बहुत बड़ी अर्थी बनाई गई
 
जिस पर रखा गया उस का शव
 
शानदार शव जिसे देखकर
 
कोई कह नहीं सकता
 
कि वह राजा नहीं है
 
सबसे पहले मन्त्री आया
 
और शव के सामने
 
झुककर खड़ा हो गया
 
फिर पुरोहित आया
 
और न जाने क्या
 
कुछ देर तक होठों में बुदबुदाता रहा
 
फिर हाथी आया
 और उसने सूंड सूँड उठाकर 
शव के प्रति सम्मान प्रकट किया
 
फिर घोड़े आये नीले-पीले
 
जो माहौल की गम्भीरता को देखकर
 
तय नहीं कर पाए
 
कि उन्हें हिनहिनाना चाहिए या नहीं
 
फिर धीरे-धीरे
 
बढ़ई
 
धोबी
 
नाई
 
कुम्हार-- सब आए
 
और सब खड़े हो गए
 
विशाल चमचमाती हुई अर्थी को घेरकर
 
अर्थी के आसपास
 
एक अजब-सा दुख था
 
जिसमें सब दुखी थे
 
मन्त्री दुखी था
 
क्योंकि हाथी दुखी था
 
हाथी दुखी था
 
क्योंकि घोड़े दुखी थे
 
घोड़े दुखी थे
 
क्योंकि घास दुखी थी
 
घास दुखी थी
 
क्योंकि बढ़ई दुखी था...
  'अकाल में सारस' नामक कविता-संग्रह से</poem>
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