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मातृभाषा / केदारनाथ सिंह
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06:19, 19 जनवरी 2009
[[Category:कविताएँ]]
<Poem>
जैसे
चींटियां
चींटियाँ
लौटती हैं
बिलों में
कठफोड़वा लौटता है
वायुयान लौटते हैं एक के बाद एक
लाल आसमान में डैने पसारे हुए
हवाई
-
अड्डे की ओर
ओ मेरी भाषा
मैं लौटता
हूं
हूँ
तुम में
जब चुप रहते-रहते
अकड़ जाती है मेरी जीभ
अनिल जनविजय
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