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|रचनाकार=केदारनाथ सिंह |संग्रह=अकाल में सारस / केदारनाथ सिंह
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[[Category:कविताएँ]]
<Poem>
अगर धीरे चलो
वह तुम्हे छू लेगी
दौड़ो तो छूट जाएगी नदी
अगर ले लो साथ
वह चलती चली जाएगी कहीं भी
यहाँ तक- कि कबाड़ी की दुकान तक भी
छोड़ दो
तो वही अंधेरे में
करोड़ों तारों की आँख बचाकर
वह चुपके से रच लेगी
एक समूची दुनिया
एक छोटे से घोंघे में
अगर धीरे चलो<br>सच्चाई यह हैवह तुम्हे छू लेगी<br>दौड़ो तो छूट जाएगी नदी<br>अगर ले लो साथ<br>वह चलती चली जाएगी कि तुम कहीं भी<br>रहोयहाँ तक --कि कबाड़ी की दुकान तक तुम्हें वर्ष के सबसे कठिन दिनों में भी<br>छोड़ दो<br>प्यार करती है एक नदीतो वही अंधेरे नदी जो इस समय नहीं है इस घर में <br>करोड़ों तारों की आँख बचाकर<br>पर होगी ज़रूर कहीं न कहींवह चुपके से रच लेगी<br>किसी चटाई एक समूची दुनिया<br>या फूलदान के नीचेएक छोटे से घोंघे में<br><br>चुपचाप बहती हुई
सच्चाई यह है<br>कभी सुननाकि तुम कहीं भी रहो<br>जब सारा शहर सो जाएतुम्हें वर्ष के सबसे कठिन दिनों में भी<br>तो किवाड़ों पर कान लगाप्यार करती है एक नदी<br>धीरे-धीरे सुननानदी जो इस समय नहीं है इस घर में<br>पर होगी जरूर कहीं न कहीं<br>आसपासकिसी चटाई <br>एक मादा घड़ियाल की कराह की तरहया फूलदान के नीचे<br>चुपचाप बहती हुई<br><br>सुनाई देगी नदी!
कभी सुनना<br>'''रचनाकाल : 1983जब सारा शहर सो जाए<br/poem>तो किवाड़ों पर कान लगा<br>धीरे धीरे सुनना<br>कहीं आसपास<br>एक मादा घड़ियाल की कराह की तरह<br>सुनाई देगी नदी!<br><br> 1983