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मुझे लिखना है / मोहन साहिल

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<poem>
मुझे लिखना है एक पत्र सूरज के नाम
करनी है मुझे शिकायत
उसकी किरणों पर जीवित दिनों की
कितने निर्दयी और बेशर्म हो गए हैं
सजा माँगनी है उन दोपहरियों के लिए
जला डालती हैं जो तलवे

बादलों को लिखना है मुझे
बूँद-बूँद जमा होता तुम्हारा जल
कितना अहंकारी हो गया है
बहा ले जाता है कई घर बरसने के साथ

लिखना है हर रात चमकने वाले
बड़े से तारे को, उसे देख-देखकर
जीवन की कितनी रातें गुजारी जा सकती हैं
ठंड में ठिठुरते, ईश्वर को लिखना है मुझे
भाग्य में कब करोगे फेरबदल
खजूर के पेड़ की ऊंचाई कब कम होगी
ज़मीन पर खड़े आदमी का कद कब होगा ऊँचा।
</poem>
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