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06:29, 20 जनवरी 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=शमशेर बहादुर सिंह
|संग्रह=कुछ कविताएँ / शमशेर बहादुर सिंह
}}
<poem>
यह विवशता
:कभी बनती चाँद
:कभी काला ताड़
:कभी ख़ूनी सड़क
:कभी बनती भीत, बांध
:कभी बिजली की कड़क, जो
:क्षण प्रतिक्षण चूमती-सी पहाड़।
यह विवशता
:बना देती सरल जीवन को
:ख़ून की आंधी
यह विवशता
:मौन में भी है अथाह
भावनाओं के सलीब
:स्वयं कांधा बन उठे-से हैं
कठिनतम।
:हड्डियों के जोड़
:खुल रहे हैं।
टूटते हैं बिजलियों के स्वप्न के आंसू;
आंख सी सूनी पड़ी है भूमि।
क्रांत अंतर में अपार
:मौन।
(1945)
</poem>