557 bytes added,
06:35, 20 जनवरी 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=शमशेर बहादुर सिंह
|संग्रह=कुछ कविताएँ / शमशेर बहादुर सिंह
}}
<poem>
चांद निकला बादलों से पूर्णिमा का।
:गल रहा है आसमान।
एक दरिया उबलकर पीले गुलाबों का
:चूमता है बादलों के झिलमिलाते
:स्वप्न जैसे पाँव।
</poem>