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{{KKRachna
|रचनाकार = शमशेर बहादुर सिंह
}}

<poem>
[त्रिलोचन के लिए]

ये आकाश के सरगम हैं
:खनिज रंग हैं
बहुमूल्य अतीत हैं
::या शायद भविष्य।
तू किस
:गहरे सागर के नीचे
::के गहरे सागरे
:::के नीचे का
::गहरा सागर होकर
भिंच गया है
अथाह शिला से केवल
अनिंद्य अवर्ण्य मछलियों के विद्युत
तुझे खनते हैं
अपने सुख के लिए।

::(सुख तो व्यंग्य में ही है
:::और कहाँ
::युग दर्शन
::::मित्र
::छल का अपना ही
:::::छंद है

क्रमशः...
</poem>
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