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बांग्ला लोकगीत
1. '''वेद छाड़ा फकिरे एइ धारा (बाउल गीत)'''
माने ना केताब-कोरान नबीर तरीक छाड़ा।
मसरेक तरीक धरे ,चन्द्र-सूर्य पूजा करे,
पंचरस साधन करे , चन्द्र भेदी यारा।।
सरल चन्द्र, गरल चन्द्र, रोहिणी चन्द्र धारा
रस-बीज मिल करे पार करछे तारा।।
सब चूल माथाय जटा, काय सिद्दि भाँग घोंटा,
कथा कय एलो मेलो, बुझा याय ना सेटा ।।
तादेर भंगी देखे लोक तुले याय गानेर बड़ घटा।
ए दीन रसिक बले बेतरीक से आउल-बाउल नेड़ा।
2. '''वेदे कि तार मर्म जाने'''
वेदे कि तार मर्म जाने
ये रूप साँइर लीला-खेला
आछे एइ देह भुवने।।
पंचतत्व वेदेर विचार
पंडितेरा करने प्रचार,
मानुष तत्व भजनेर सार
वेद छाड़ा वै रागेर माने।।
गोले हरि बलले कि हय,
निगूढ़ तत्व निराला पाय,
नीरे क्षीरे युगल हय
साँइर बारमखाना सेइखाने।।
पइले कि पाय पदार्थ
आत्म तत्वे याराभ्रान्त
लालन बले साधु मोहान्त
सिद्ध हय आपनार चिने।
3.'''सब लोके कय लालन कि जात संसारे'''
सब लोके कय लालन कि जात संसारे
लालन कय, जेतेर कि रूप, देखलाम ना ए नजरे।।
छुन्नत दिले हये मुसलमान,
नारी लोकेर कि हय विधान?
वामन यिनि पैतार प्रमाण
वामनि चिनी कि धरे।।
केओ माला, केओ तसबि गलाय,
जाइते कि जात भिन्न बलाय
जेतोर चिह्न रय कार रे।।
गर्ते गेले कू पजल कय,
गंगाय गेले गंगाजल हय,
मूले एक जल, से ये भिन्न नय
भिन्न जानाय पात्र- अनुसारे।
जगत बेड़े जेतेर कथा
लोके गौरव करे यथा तथा,
लालन से जेतेर फाता
बिकियेछे सात बजारे।।
4.'''एमन समाज कबे गो सृजन हबे'''
एमन समाज कबे गो सृजन हबे
ये दिन हिन्दु-मुसलमान बौद्ध-खृष्टान जाति-गोत्र नाहि रबे।
शोनाय लोभेर बुलि
नेबे ना केओ काँधेर झुलि,
इतर आतरफ बलि
दुरे ठेले ना देबे।।
आमिर फकीर हये एक ठाँइ
सबार पाओना पाबे सबाइ,
आशरफ बलिया रेहाइ,
भवे केओ येनाहि पाबे।।
धर्म-कुल-गोत्र-जातिर,
तुलबे ना गो जिगिर,
केंदे बले लालन फकिर
केबा देखाये देबे।
5.'''एमन मानव-जनम आर कि हबे?'''
एमन मानव-जनम आर कि हबे?
मन या कर त्वराय कर एइ भावे।
अन्तर रूप सृष्टि करलने साँइ
शुनि मानवेर तुलना किछुर नाइ
देव-मानवगण करे अराधन जन्म निते मानवे
कत् भाग्यरे फल ना जानि,
मनेर पेयेछ एइ मानव तरणी,
येन मरा ना डोबे।।
एइ मानुषे हवे माधुर्य भजन,
ताइते मानुष रूप एइ गठिल निरंजन
एबार ठकिले आर ना देखि किनार,
लालन कय कातर भावे।।
'''बंगाल के लोकप्रिय लोकगीत भाटियाली'''
6.'''आमार सरल प्राणे एत दुःख दिले'''
आमार सरल प्राणे एत दुःख दिले।।
सहे ना यौवन ज्वाला,
प्रेम ना करे छिलाम भालो गो।
दुइ नयने नदी नाला तुइ बन्धु बहाइले।।
आगे तो ना जानि आमि,
एत पाषाण हइबे तुमि गो।
बइसे थाकताम एकाकिनी, कि इहते प्रेम ना करिले।।
तुमि बन्धु ताके सुखे,
मरब आमि देखुक लोके गो
अभागिनीर मरणकाले आइस खबर पाइले।।
7.'''आरे ओ, ओरे सुजन नाइया-'''
आरे ओ, ओरे सुजन नाइया-
कोन वा देशे याओ रे तुमि, सोनार तरी बाइया।।
कोन वा देशे बाड़ी तोमार, कोन वा देशे याओ।।
एइ घाटे लगाइया नाओ, आमार लइया याओ।।
सोनार तरी, रंगेर बादाम, दिवाछ उड़ाइया।
पुबाली बातासे बादाम उड़े रइया रइया।।
रंग देखिया एइ अभागी कान्दे घाटे बइया।
सोतेर टाने कलसी आमार गेल रे भसिया।।
आइस आइस सुजन नाइया, कलसी देओ धरिया।।
कि धन लइया याइब घरे, शून्य आमार हिया।।
8.'''ओ कोकिला रे---'''
ओ कोकिला रे---
आमार निभानो आगुन ज्वले मोर स्वरे।।
देखले तोर रूपेर किरण,
मने पड़े बन्धुर वरण।
आमार दुटो मनेर कथा शोन, कोकला रे।।
पड़ले नयन काल रूपे
पराण आमार उठे क्षेपे।
आमार ए व्यथा कि बुझबे अपरे।।
9.'''कृष्ण हारा हइलाम गो'''
कृष्ण हारा हइलाम गो,
कृष्ण हारा हइया कान्दछि गो वने निशि दिने
ओ गो, आमार मत दीन दुःखिनी,
के आछे आर वृन्दावने।।
सखी गो, यार ये ज्वाला सेइ जाने
अन्य कि आर जाने
आमार अरण्ये रोदन करा,
कार काछे कइ, केवा शोने।।
सखी गो, नयन दिलाम रूपे नेहारे
प्राण दिलाम तार सने।
ओ गो, देह दिलाम, अंगे वसन,
मन दिलाम तार श्रीचरणे।।
सखी गो, कृष्ण सून्य देह गो आमार,
काज कि ए जीवने।
अधीन कालाचाँद, कय,
राइ मरिल श्याम बिहने।।
10. '''आमार मनेर मानुष, प्राण सइ गो'''
आमार मनेर मानुष, प्राण सइ गो
पाइगो कोथा गेले।
आमि याबो सेइ देशे
से देशे मानुष मिले।।
यदि मनेर मानुष पेतेम तारे हद मझारे
बसाइताम अति यतन कइरे।.।
आमि मन-सुते माला गेंथे
दिताम ताहार गले।।
भेवे छिलाम मने मने, से याबे ना आमार छेड़े,
आरे आपन बइले।
से ये फाँकि दिये गेलो चले,
ऐ कि छिल मोर कपाले।।
इसी प्रकार यह गीत दैहिक अथवा काया संबंधित है---
आरे मन माझि, तोर बैठा नेरे,
आमि आर बाइते पारलाम ना।
आमि जनम भइरा बाइलाम बैठा रे
तरी भाइटाय रय, आर उजाय ना।।
ओरे जंगी-रसी यतइ कसि,
ओ रे हाइलेते जल माने ना।
नायेर तली खसा गुरा भांगारे,
नाव तो गाव-गयनि माने ना।।