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<br>चौ०-निज भ्रम नहिं समुझहिं अग्यानी। प्रभु पर मोह धरहिं जड़ प्रानी॥
<br>जथा गगन घन पटल निहारी। झाँपेउ मानु भानु कहहिं कुबिचारी॥
<br>चितव जो लोचन अंगुलि लाएँ। प्रगट जुगल ससि तेहि के भाएँ॥
<br>उमा राम बिषइक अस मोहा। नभ तम धूम धूरि जिमि सोहा॥
<br>दो०-जेहि इमि गावहि बेद बुध जाहि धरहिं मुनि ध्यान॥
<br>सोइ दसरथ सुत भगत हित कोसलपति भगवान॥११८॥
<br>–*–*–<br>चौ०-कासीं मरत जंतु अवलोकी। जासु नाम बल करउँ बिसोकी॥
<br>सोइ प्रभु मोर चराचर स्वामी। रघुबर सब उर अंतरजामी॥
<br>बिबसहुँ जासु नाम नर कहहीं। जनम अनेक रचित अघ दहहीं॥
<br>दो०-पुनि पुनि प्रभु पद कमल गहि जोरि पंकरुह पानि।
<br>बोली गिरिजा बचन बर मनहुँ प्रेम रस सानि॥११९॥
<br>–*–*–<br>चौ०-ससि कर सम सुनि गिरा तुम्हारी। मिटा मोह सरदातप भारी॥
<br>तुम्ह कृपाल सबु संसउ हरेऊ। राम स्वरुप जानि मोहि परेऊ॥
<br>नाथ कृपाँ अब गयउ बिषादा। सुखी भयउँ प्रभु चरन प्रसादा॥
<br>नाथ धरेउ नरतनु केहि हेतू। मोहि समुझाइ कहहु बृषकेतू॥
<br>उमा बचन सुनि परम बिनीता। रामकथा पर प्रीति पुनीता॥
<br>दो०-हिँयँ हियँ हरषे कामारि तब संकर सहज सुजान
<br>बहु बिधि उमहि प्रसंसि पुनि बोले कृपानिधान॥१२०(क)॥
<br>नवान्हपारायन,पहला विश्राम
<br>मासपारायण, चौथा विश्राम
<br>सो०-सुनु सुभ कथा भवानि रामचरितमानस बिमल।
<br>कहा भुसुंडि बखानि सुना बिहग नायक गरुड॥१२०गरुड़॥१२०(ख)॥
<br>सो संबाद उदार जेहि बिधि भा आगें कहब।
<br>सुनहु राम अवतार चरित परम सुंदर अनघ॥१२०(ग)॥
<br>हरि गुन नाम अपार कथा रूप अगनित अमित।
<br>मैं निज मति अनुसार कहउँ उमा सादर सुनहु॥१२०(घ॥
<br>–*–*–<br>चौ०-सुनु गिरिजा हरिचरित सुहाए। बिपुल बिसद निगमागम गाए॥
<br>हरि अवतार हेतु जेहि होई। इदमित्थं कहि जाइ न सोई॥
<br>राम अतर्क्य बुद्धि मन बानी। मत हमार अस सुनहि सयानी॥
<br>दो०-असुर मारि थापहिं सुरन्ह राखहिं निज श्रुति सेतु।
<br>जग बिस्तारहिं बिसद जस राम जन्म कर हेतु॥१२१॥
<br>–*–*–<br>चौ०-सोइ जस गाइ भगत भव तरहीं। कृपासिंधु जन हित तनु धरहीं॥
<br>राम जनम के हेतु अनेका। परम बिचित्र एक तें एका॥
<br>जनम एक दुइ कहउँ बखानी। सावधान सुनु सुमति भवानी॥
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