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सारनाथ की एक शाम / शमशेर बहादुर सिंह
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16:28, 22 जनवरी 2009
::क्योंकि
मैं उसी धरती में
लौट
लोट
रहा हूँ उसकीऋतुओं की पलकों
-
सा बिछा हुआ मैं
उसकी ऊष्मा में
सुलग रहा हूँ
Eklavya
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