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कविता के भ्रम में / धूमिल
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20:22, 22 जनवरी 2009
अपने शहर में वापस आओगे
तुम मुझे गाओगे जैसे अकाल में
खेत गाए
जात्ये
जाते
हैं
और अभियोग की भाषा के लिए
टटोलते फिरोगे वे चेहरे
::जो कविता के
भ्र्म
भ्रम
में
::जीने के पहले ही
::परदे के पीछे
नींद में मर चुके हैं।
</poem>
अनिल जनविजय
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