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|रचनाकार=ओमप्रकाश सारस्वत
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<Poem>

मेल-जोल
बुढ़ाएँ भी तो
किसलिए?

तुम्हें कुछ मौसमी परिभाषाएँ
आती हैं
तुम्हारे पास
सैकड़ों-मन तितलियाँ हैं
जो एक साथ
कई फूलों पर
बैठ जाती हैं
हम कुछ फूल उगाएं भी
तो किसलिए?

तुम्हारी हथेली से
जहाज़ उड़ते हैं
तुम्हारी पलकों पर
आकाश झुकते हैं


तुम
चाँद को
आँख दिखा देते हो
कोई करे भी
टुकड़ा भर
आकाश का जुगाड़ तो किसलिए?

चाँदनी तुम्हें
शराब-सी
प्यारी है
तुम्हारी
एक-एक अदा
सौ-सौ मौसमों पर
भारी है सम्बंध
तुम्हें पर्स के रूमाल हैं
कोई कुरेदे भी
नाखूनों से
देवादारुओं पर
दो नाम
तो किसलिए?

वैसे तितलियाँ
फूल
मौसम
तुम्हारे ही नहीं हैं
केवल तुम्हारे ही पास नहीं है
बेपरवाह मन
पर सोचते हैं
हम
आखिर खुद को
बिगाड़ें भी
तो किसलिए

</poem>
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