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09:15, 24 जनवरी 2009 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=प्रेम नारायण 'पंकिल'
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[[Category:कविता]]
<poem>
थे नाप रहे नभ ओर-छोर चढ़ धारधार पर धाराधर ।
दामिनी दमक जाती क्षण-क्षण श्यामलीघटाओं से सत्वर ।
कल-कल छल-छल जलरव मुखरित था यमुना-पुलिन मनोहारी ।
तन से अठखेली कर बरबस खींचता प्रभंजन था सारी ।
परिरंभण में बांधे विटपों को थीं वल्लरी बिना बाधा।
अंचल पसार कर लगी बिलखने आ जा राधा के कांधा।
व्रजचंद्र! पधारो बिलख रही बावरिया बरसाने वाली।
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवनवन के वनमाली ॥ २॥
</poem>