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{{KKRachna
|रचनाकार=प्रेम नारायण 'पंकिल'
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[[Category:कविता]]
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सुधि करो प्राण थी अंकगता किसलय काया अधखुले नयन।
श्लथ श्वांस सुरभि संघात जन्य थे काँप-काँप जाते पृथु स्तन।
छू मद-घूर्णित मेरे कपोल सिहरती रही कुंदन बाली।
तुम मृदु करतल से सहलाते थे मेरी अलकें घुंघुराली।
"जग में सर्वोत्तम कौन प्रिया?" पूछा था तुमने वनमाली ।
तब बाहुलता में बाँध तुम्हें मैं विहंस उठी कह "पंचाली"।
फिर भाव विलीन हुई तुममें बावरिया बरसाने वाली।
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवन वन के वनमाली ॥ १६ ॥
</poem>
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