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गीतावली / तुलसीदास

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{गीता.[बाल] 002.01} बालकाण्ड{गीता.[बाल] 002. राग} आसावरी{गीता.[बाल] 002.01} आजु सुदिन सुभ घरी सुहाई |{गीता.[बाल] 002.01} रूप-सील-गुन-धाम राम नृप-भवन प्रगट भए आई ||{गीता.[बाल] 002.02} अति पुनीत मधुमास, लगन-ग्रह-बार-जोग-समुदाई |{गीता.[बाल] 002.02} हरषवन्त चर-अचर, भूमिसुर-तनरुह पुलक जनाई ||{गीता.[बाल] 002.03} बरषहिं बिबुध-निकर कुसुमावलि, नभ दुन्दुभी बजाई |{गीता.[बाल] 002.03} कौसल्यादि मातु मन हरषित, यह सुख बरनि न जाई ||{गीता.[बाल] 002.04} सुनि दसरथ सुत-जनम लिये सब गुरुजन बिप्र बोलाई |{गीता.[बाल] 002.04} बेद-बिहित करि क्रिया परम सुचि, आनँद उर न समाई ||{गीता.[बाल] 002.05} सदन बेद-धुनि करत मधुर मुनि, बहु बिधि बाज बधाई |{गीता.[बाल] 002.05} पुरबासिन्ह प्रिय-नाथ-हेतु निज-निज सम्पदा लुटाई ||{गीता.[बाल] 002.06} मनि-तोरन, बहु केतुपताकनि, पुरी रुचिर करि छाई |{गीता.[बाल] 002.06} मागध-सूत द्वार बन्दीजन जहँ तहँ करत बड़ाई ||{गीता.[बाल] 002.07} सहज सिङ्गार किये बनिता चलीं मङ्गल बिपुल बनाई |{गीता.[बाल] 002.07} गावहिं देहिं असीस मुदित, चिर जिवौ तनय सुखदाई ||{गीता.[बाल] 002.08} बीथिन्ह कुङ्कम-कीच, अरगजा अगर अबीर उड़ाई |{गीता.[बाल] 002.08} नाचहिं पुर-नर-नारि प्रेम भरि देहदसा बिसराई ||{गीता.[बाल] 002.09} अमित धेनु-गज-तुरग-बसन-मनि, जातरुप अधिकाई |{गीता.[बाल] 002.09} देत भूप अनुरुप जाहि जोइ, सकल सिद्धि गृह आई ||{गीता.[बाल] 002.10} सुखी भए सुर-सन्त-भूमिसुर, खलगन-मन मलिनाई |{गीता.[बाल] 002.10} सबै सुमन बिकसत रबि निकसत, कुमुद-बिपिन बिलखाई ||{गीता.[बाल] 002.11} जो सुखसिन्धु-सकृत-सीकर तें सिव-बिरञ्चि-प्रभुताई |{गीता.[बाल] 002.11} सोइ सुख अवध उमँगि रह्यो दस दिसि, कौन जतन कहौं गाई ||{गीता.[बाल] 002.12} जे रघुबीर-चरन-चिन्तक, तिन्हकी गति प्रगट दिखाई |{गीता.[बाल] 002.12} अबिरल अमल अनुप भगति दृढ़ तुलसिदास तब पाई ||{गीता.[बाल] 003. राग} जैतश्री{गीता.[बाल] 003.01} सहेली सुनु सोहिलो रे |{गीता.[बाल] 003.01} सोहिलो, सोहिलो, सोहिलो, सोहिलो सब जग आज |{गीता.[बाल] 003.01} पूत सपूत कौसिला जायो, अचल भयो कुल-राज ||{गीता.[बाल] 003.02} चैत चारु नौमी तिथि सितपख, मध्य-गगन-गत भानु |{गीता.[बाल] 003.02} नखत जोग ग्रह लगन भले दिन मङ्गल-मोद-निधान ||{गीता.[बाल] 003.03} ब्योम, पवन, पावक, जल, थल, दिसि दसहु सुमङ्गल-मूल|{गीता.[बाल] 003.03} सुर दुन्दुभी बजावहिं, गावहिं, हरषहिं, बरषहिं फूल ||{गीता.[बाल] 003.04} भूपति-सदन सोहिलो सुनि बाजैं गहगहे निसान |{गीता.[बाल] 003.04} जहँ-तहँ सजहिं कलस धुज चामर तोरन केतु बितान ||
{गीता.[बाल] 003.05} सीञ्चि सुगन्ध रचैं चौकें गृह-आँगन गली-बजार |
{गीता.[बाल] 003.05} दल फल फूल दूब दधि रोचन, घर-घर मङ्गलचार ||
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