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फूल / महादेवी वर्मा

3 bytes added, 06:04, 13 मई 2007
कहो किस निर्मोही की बाट!<br><br>
चांदनी का श्रंगार श्रृंगार समेट<br>
अधखुली आंखों की यह कोर<br>
लुटा अपना यौवन अनमोल<br>
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