किसी कारण;
तब एक क्षण भर
मेरे कंधों पर खड़ा हुआ है देव एक दुर्धर
थामता नभस दो हाथों से
भारान्वित मेरी पीठ बहुत झुकती जाती
वह कुचल रही है मुझे देव-आकृति।
है दर्द बहुत रीढ़ में
पसलियाँ पिरा रहीं
पाँव में जम रहा खून
द्रोह करता है मन
मैं जनमा जब से इस साले ने कष्ट दिया
उल्लू का पट्ठा कंधे पर है खड़ा हुआ।
क्रमशः...
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