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|रचनाकार=गजानन माधव मुक्तिबोध}}[[Category:लम्बी कविता]]{{KKPageNavigation|पीछे=एक अंतर्कथा / भाग 1 / गजानन माधव मुक्तिबोध|आगे=एक अंतर्कथा / भाग 3 / गजानन माधव मुक्तिबोध|सारणी=एक अंतर्कथा / गजानन माधव मुक्तिबोध
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*[[<poem>आगे-आगे माँपीछे मैं;उसकी दृढ़ पीठ ज़रा सी झुकचुन लेती डंठल पल भर रुकवह जीर्ण-नील-वस्त्राहै अस्थि-दृढ़ागतिमती व्यक्तिमत्ताकर रहा अध्ययन मैं उसकी मज़बूती काउसके जीवन से लगे हुएवर्षा-गर्मी-सर्दी और क्षुधा-तृषा के वर्षों सेमैं पूछ रहा –टोकरी-विवर में पक्षी-स्वरकलरव क्यों हैमाँ कहती –'सूखी टहनी की अग्नि क्षमताही गाती है पक्षी स्वर मेंवह बंद आग है खुलने को।'मैं पाता हूँकोमल कोयल अतिशय प्राचीनव अति नवीनस्वर में पुकारती है मुझकोटोकरी-विवर के भीतर से।पथ पर ही मेरे पैर थिरक उठतेकोमल लय में।मैं साश्रुनयन, रोमांचित तन; प्रकाशमय मन।उपभाएँ उद्धाटित-वक्षा मृदु स्नेहमुखीएक अंतर्कथा / भाग 1 / गजानन माधव मुक्तिबोध]]-टक देखतीं मुझको –*[[प्रियतर मुसकातीं...मूल्यांकन करते एक अंतर्कथा / भाग 2 / गजानन माधव मुक्तिबोध]]-दूसरे का*[[हम एक अंतर्कथा / भाग 3 / गजानन माधव मुक्तिबोध]]-दूसरे को सँवारते जाते हैं*[[वे जगत्-समीक्षा करते-सेमेरे प्रतीक रूपक सपने फैलाते हैंआगामी के।दरवाज़े दुनिया के सारे खुल जाते हैंप्यार के साँवले किस्सों की उदास गलियाँगंभीर करूण मुस्कराहट मेंअपना उर का सब भेद खोलती हैं।अनजाने हाथ मित्रता केमेरे हाथों में पहुँच मित्रता भरते हैंमैं अपनों से घिर उठता हूँमैं विचरण करता-सा हूँ एक अंतर्कथा / भाग 4 फ़ैंटेसी मेंयह निश्चित है कि फ़ैंटेसी कल वास्तव होगी।मेरा तो सिर फिर जाता हैऔ' मस्तक मेंब्रह्मांड दीप्ति-सी घिर उठतीरवि-किरण-बिंदु आँखों में स्थिर हो जाता है। </ गजानन माधव मुक्तिबोध]]poem>
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