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{{KKRachna
|रचनाकार=प्रेम नारायण 'पंकिल'
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[[Category:कविता]]
<poem>
था कहा ”प्रिये! मत ठुकराओ हो प्राय! प्रेरणा-आस तुम्हीं ।
कर सकती जिसको अधर-वारूणी तृप्त, प्रणय की प्यास तुम्हीं।
चाहता उल्लसित अम्बर में विस्मृत-सुधि उड़ जाऊँ सजनी।
खग-मुखर स्निग्ध अरूणाभ उषा में तेरा पद गाऊँ सजनी।
दो झुला ग्रीव में निज मृणाल-सी बाहु-वल्लरी तुम अनन्य।
सूक्ष्म को स्थूल का मिले मधुर आभास प्राण हों धन्य-धन्य।“
हो कहाँ प्रीति-वल्लरी! विकल बावरिया बरसाने वाली ।
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवन-वन के वनमाली ॥74॥
</poem>
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