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17:36, 31 जनवरी 2009 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=प्रेम नारायण 'पंकिल'
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[[Category:कविता]]
<poem>
अभिरामा निद्रा की गोदी में सोये तुम कर बन्द नयन।
मैं मुग्ध झुका पलकें सहलाती थी प्रिय तेरे मृदुल चरण।
चूमती बरौंनी चारू चरण थी सजग चुये दृग-नीर नहीं।
प्रियतम सुख से सोयें उनको दे जगा हमारी पीर नहीं ।
था झूल रहा मेरे वक्षस्थल पर कचनार-हार-अनुपम।
मधु-मृदुल-स्वप्न-रति-स्पन्दन से थे सिहर जग गये तुम प्रियतम!
उस अलसाये दृग की भूखी बावरिया बरसाने वाली ।
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवन-वन के वनमाली ॥78॥
</poem>